किसी भी यात्रा में
कोई दुर्घटना घट सकती थी
और मैं नष्ट हो सकता था
तुमसे विदा होने के बाद
यात्राओं में
यह भय लगता था
मैं सुरक्षित रहा मगर हर बार
तुम्हें
चिट्ठी में मुझे यही लिखना पड़ा
कि मैं सकुशल पहुँच गया हूँ यहाँ
मेरे ही लिखे को पढ़कर भी
तुम्हें कैसे यक़ीन आता होगा
कि मैं सकुशल पहुँच गया हूँ यहाँ
ख़ुद मुझे
यह अचरज होता था
क्योंकि हर बार
तुम्हें देखता रहता हुआ
यहाँ पहुँचता कहाँ था मैं
तुम्हारे पास छूट जाता था
और जो बचता था मैं
वह आँखों से गिरकर
टूट जाता था
जैसे वह एक आँसू था
और उसे
वहीं थाम लेने वाला
तुम्हारा चुंबन नहीं था